बस्तर मित्र न्यूज।
प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को गोंडी भाषा दिवस मनाया जाता है। इस दिन आचार्य मोती रावने कंगाली जी का जन्म हुआ था। कंगाली जी अपना पूरा जीवन गोंडी भाषा और संस्कृति पर रिसर्च करते हुए बिताए थे, वे पहले शोधार्थी थे। जिन्होंने सिंधु लिपि को गोंडी भाषा के मूल रूप के द्वारा पढ़कर ‘सैन्धवी‘ लिपि का गोंडी में ‘उद्वाचन‘ नामक पुस्तक लिखा।
इतिहासकारों ने मोहन जोदड़ो और हड़प्पा चित्र लिपि को पढ़ने का जी तोड़ प्रयास किया लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। लेकिन आदिवासियों की गोंडी भाषा के माध्यम से इनको पढ़ना अब संभव हो गया है। इस खोज का श्रेय मध्यप्रदेश निवासी गोंडी भाषा के साहित्यकार डॉ. मोती रावने कंगाली जी को जाता है। ये चित्र लिपियां दाएं से बाएं पढ़ी जाती है। डॉ. कंगाली ने बहुत सारे चित्र लिपियों को गोंडी के माध्यम से अनुवाद करके मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के संदेशों को आम लोगों तक पहुंचाया है।
एक चित्रलिपि में बताया गया है, कि सजातीय गोत्र में विवाह करना पहले भी वर्जित था। इसी तरह एक चित्रलिपि में कहा गया है, कि सर्वकल्याणवादी पहांदी गुरु मुखिया का मार्ग है। एक चित्र लिपि के अनुसार मापन करने वाला प्रतिष्ठित संरक्षक है। राजधानी में चल रहे गोंडी भाषा के मानकीकरण की कार्यशाला में प्रकाश सलामे इस तरह की बहुत सारी चित्रलिपियों के साथ आए हुए हैं। और गोंडी भाषा की इस नई खोज से लोगों को रूबरू करा रहे हैं।
आचार्य जी की मृत्यु समाज और देश के लिए बहुत बड़ी क्षति थी, क्योंकि आज भी अगर जीवित होते तो शायद सिंधु लिपि को पूरी तरह से पढ़ चुके होते। उनकी इस रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए आज हम नए जमाने की युवा पीढ़ी को आवाहन करते हैं। कि अपनी मातृभाषा गोंडी को दिन प्रतिदिन के व्यवहार में लाएं और इस पर शोध करें तथा कंगाली जी के पदचिन्ह पर चलकर उनके अधूरे कार्य को पूरा करें, आज का यह दिन आचार्य जी को और अपनी मातृभाषा गोंडी को समर्पित करते हुए आप सभी को सेवा जोहार।