
कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो असंभव कुछ भी नहीं। बस जरूरत है हिम्मत, मेहनत, लगन और धैर्य की। जिस जमीन पर घास-फूस नहीं उगती थी, वहां आज हरी सब्जियों की खेती लहलहा रही है। एक नहीं साल में तीन-तीन फसलें निकल रही है। वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से नौकरियां खत्म हो रही थी। शहर में कैरियर बनता नहीं दिखा तो बेरोजगार इंजीनियर ने गांव का रूख किया और अपनी मेहनत से खुद का भविष्य संवारा। हर साल अब खुद लाखों कमा रहा है और दर्जनभर लोगों को स्थायी रोजगार भी दे रहे हैं। उनकी कामायबी दूसरे युवाओं के लिए प्रेरणा भी बन रही है।
धमतरी जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर जंगली रास्ते में बसे ग्राम तुमराबहार में यह हकीकत नजर आता है। इस गांव के आसपास का अधिकांश हिस्सा पथरीली जमीन है। कुछ खेती बाड़ी है, लेकिन मुरूम की अधिकता के कारण उपज उतनी अच्छी नहीं होती। यहीं लगभग आठ एकड़ की जमीन शोभा महाड़िक की है। उनका परिवार भी इस जमीन की कीमत नहीं पहचानता था, लेकिन बेटे अनुज महाड़िक (30 वर्ष) ने यहां से अब सब्जी रूपी सोना निकालना शुरू कर दिया है। वास्तव में अनुज महाडिक ने भी ऐसा नहीं सोचा था। दुर्ग शहर में पले बढ़े अनुज ने अपने अन्य दोस्तों की तरह शहर में ही मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली और छत्तीसगढ़ पीएससी की धुन में कुछ साल तक मस्त रहे। बात नहीं बनी तो कोचिंग का रास्ता देखा, लेकिन सीमित सफलता के रास्ते ने उनका मोह भंग कर दिया।
वैश्विक महामारी कोरोना का दौर था। जब सब महामारी के भय से घरों में कैद थे, तब अनुज ने इसे नए संकल्प के लिए बेहतर अवसर माना। दुर्ग से सीधे ग्राम तुमराबहार पहुंचे और अपनी बंजर पड़ी जमीन को कर्मभूमि के रूप में विकसित करना शुरू कर दिया। आज यहां विभिन्न प्रकार की सब्जियां तैयार हो रही है। आम के बगीचे भी हैं। साथ में कुक्कुट पालन और बकरा पालन की यूनिट भी तैयार हो गई है। एक के बाद एक फसल तैयार हो रही है और यह युवा इंजीनियर तुमराबहार में एक सफल किसान के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। न सिर्फ इस उद्यम से उसने अपना कैरियर बनाया बल्कि तुमराबहार के दर्जनभर लोगों को स्थायी रोजगार भी दे रहे हैं।
अनुज ने लगभग आठ एकड़ की जमीन को फार्म हाउस के रूप में विकसित करना शुरू किया है। खेती के साथ-साथ भूजल संरक्षण, मछली पालन के लिए भी वह तैयारी में जुटा है। साथ ही कुछ और बड़े प्रोजेक्ट पर वह काम कर रहा है। तुमराबहार के विजय मंडावी, उमेन्द्र कुमार मरकम, मुन्नी बाई, त्रिवेणी, रेखा बाई और दशरी बाई ने कहा कि अनुज के आने के पहले यह जमीन बंजर और खाली थी। पथरीली एवं मुरूमयुक्त मिट्टी के कारण यहां उत्पादन कम ही होता है, लेकिन अनुज ने इसे ऐसा संवार दिया है कि उनके गोभी व बैंगन को देखकर हम खुद हैरत में है।
अनुज महाडिक ने चर्चा में कहा कि मैं शहर में पला बढ़ा हूं, लेकिन बचपन से ही कुछ अलग करने की तमन्ना थी और पीएससी की असफलता ने मुझे इस ओर मोड़ दिया। खेती से कुछ करने का मौका मिला और उसी में मेहनत कर रहा हूं। सब्जी फसल से साल में लगभग 8 से 10 लाख तक की आमदनी हो जाती है। गर्मी के सीजन में पिछले साल ढाई लाख का आम बिक्री किया था। अब खेती के साथ सह व्यवसाय के रूप में बकरा एवं कुकुट पालन शुरू किया हूं। अनुज का मानना है कि सिर्फ धान की खेती पर निर्भर रहने से किसान आगे नहीं बढ़ पाएंगे। उन्हें फसल चक्रीकरण के साथ उन्नत तकनीक और दूसरे फसल की खेती अपनाना होगा, तभी वे आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे।