कांकेर/बस्तर मित्र।
प्राकृतिक पर्व (पंडुम), बीजा पंडुम ,जो मूलवासियो के लिए एक बड़ा त्यौहार है | प्रकृति(पुरूड) में होते बदलाव पर, उनका प्रकृति को सेवा देना अत्यंत दर्शनीय होता है अतः हमारा हर एक तीज-त्यौहार प्रकृति के जुड़ा होता है |धरती में बीजो(पडेम) को बोने से लेकर फसल के पक जाने तक, प्रकृति से प्राप्त की गई चीजों को सबसे पहले प्रकृति (पेड़-पौधे, जीव-जंतु) को चढ़ाना और सेवा देना ये मूलवासियो का नियम ही नहीं प्रकृति के प्रति सम्मान भी प्रदर्शित करता है।
इस त्यौहार पर गुड्डे-गुडिया की शादी करना छत्तीसगढ़ के ग्रामीण छेत्रो में काफी प्रसिद्ध है | खेल-खेल में नई पीढ़ी को ज्ञान देने का अद्भुत त्योहार है अक्ति | इसी दिन कुछ विशेष जनजातियों में अपने पूर्वजो(हासपेन) को अपने पेन (देव) में मिलाने की भी प्रथा है | आदिवासी क्षेत्र के गांवो में आज के दिन गांव के प्रमुख पेन(देवी,देव)और पेनगायता,पुजारी लोग गांव को सुरक्षित रखने के लिए बंधेस (सभी कैना- राव की सेवा) करते है गॉव की सुरक्षा पेनो(देवताओ) द्वारा सुनिश्चित करते है अतः ये व्यवस्था एक गावो के संतुलन और प्राकृतिक सेवा का प्रतिक है।