

सोमवार को गलियों में दौड़ लगाने के लिए मिट्टी के बैल तैयार हैं। बाजारों में बिक्री के लिए पहुंचे इन बैलों की कीमत 40 से 80 रुपए प्रति जोड़ी है। जांता-पोरा और मिट्टी के दूसरे खिलौने भी 120-160 रुपए तक उपलब्ध हैं। इधर, रावणभाठा मैदान में असली बैलों के बीच होने वाली दौड़ प्रतियोगिता इस बार भी रद्द कर दी गई है। तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव एवं विकास समिति ने यह फैसला लिया है। परंपरा न टूटे इसलिए सोमवार को यहां 8 जोड़े बैल की पूजा की जाएगी। आयोजन समिति के अध्यक्ष माधवलाल यादव ने बताया कि मैदान ले जाने से पहले सभी बैलों को सजाया जाएगा। शाम 4 बजे रावणभाठा मैदान में विधायक बृजमोहन अग्रवाल, महापौर एजाज ढेबर, महंत डॉ. रामसुंदर दास और पार्षद सतनाम सिंह पनाग की मौजूदगी में बैलों की विधिवत पूजा-अर्चना की जाएगी। बैल मालिक किसानों का सम्मान करेंगे।
छत्तीसगढ़ में पोरा पर बैलों को सजाने और उनकी दौड़ कराने की परंपरा पुरानी है, लेकिन पिछले कुछ समय से इसका चलन कम हुआ है। इसे पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव एवं विकास समिति ने 12 साल पहले रावणभाठा मैदान में बैल दौड़ की शुरुआत की थी। आखिरी बार यहां बैलों की दौड़ 2019 में हुई थी। तब तक पोरा पर आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में किसान यहां अपने बैलों के साथ जुटते थे। जीतने वाले बैल और उसके मालिक को इनाम के तौर पर हजारों रुपए दिए जाते थे। 2020 और अब 2021 में भी यह प्रतियोगिता महामारी की भेंट चढ़ गई।
भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला पोला खरीफ की खेती का दूसरा चरण (निंदाई-कोड़ाई) पूरा होने की खुशी में मनाया जाता है। किसान फसल बढ़ने की खुशी में बैलों की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता जताते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बैलों के सहयोग से ही खेती की जाती है। पोरा की पूर्व रात्रि गर्भ पूजन किया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है। अर्थात धान के पौधों मे दूध भरता है। इसी कारण पोरा के दिन किसी को भी खेत में जाने की अनुमति नहीं होती। रात मे जब सो जाते है, तब गांव के पुजारी-बैगा, मुखिया व कुछ पुरुष सहयोगी आधी रात को गांव के बाहर सीमा क्षेत्र मे प्रतिष्ठित सभी देवी देवताओं की विशेष पूजा करते हैं।
पोरा के लिए घरों में ठेठरी-खुर्मी, बरा और गुड़ चीला जैसे पारंपरिक व्यंजन बनने लगे हैं। सुबह नंदिया बइला, जांता पोरा की पूजा के बाद इन्हीं व्यंजनों का भोग लगाया जाएगा। वहीं किसान परिवारों में सुबह गाय-बैलों का स्नान-श्रृंगार किया जाएगा। सींग और खुर यानी पैरों में महाउर लगाया जाएगा, वहीं गले में घुंघरू, घंटी पहनाई जाएगी। मान्यता है कि श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस ने कई असुरों को भेजा था। इन्हीं में से एक था पोलासुर जिसका श्रीकृष्ण ने भाद्रपद अमावस्या के दिन वध किया था। पोरा मनाने की कई प्रमुख मान्यताओं में एक यह भी है।