कांकेर/बस्तर मित्र।
प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा कर न केवल परिवारों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। बल्कि जंगल की लकड़ी पानी मिट्टी और चोरी की बिजली का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। लाल ईंट की निर्माण कर संचालक लाखों रुपए की कमाई जेब में डाल कर प्रकृति की गोद को सुनि कर रहे हैं प्रतिवर्ष लाखों रुपए की राजस्व विभाग को क्षति पहुंचाने के बाद राजस्व विभाग एवं खनिज विभाग के आला अधिकारी भी जानकर अनजान बने हुए ।
इससे अवैध ईट कारोबारियों के हौसले बुलंद हैं। उच्च अधिकारियों के कुंभकरणीय की नींद्रा मैं होने से बड़ी संख्या में ईटे भट्ठा लगा हुआ है। जिस पर विभाग कार्रवाई कर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रही है।
गांव के चारों ओर जल जंगल और जमीन क दोहन किया जा रहा है। लेकिन विभागीय अमला मूलदर्शक बने बैठी हुई है। संचालक नियम कानून को तक में रखकर मनमानी पर उतारू हो गए हैं। इनके चलते वह विभाग से किसी तरह के अनुमति लेना भी अब जरूरी नहीं समझते है।
जबकि मिट्टी जिसकी खुदाई के लिए एक निश्चित मानक तय की जाती है। कानून की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रदूषण विभाग से एनओसी होना अनिवार्य है। अवैध ईटा भट्ठा का संचालन होना केवल मानव जीवन ही नहीं अपितु वन्य प्राणियों के लिए भी नासूर बन जाता है।