

इन दिनों पूरे अंचल में भगवान गंणेश की पूजा पाठ चल रहा है और जय गणेश जय गणेश देवा गुंजायमान हो रहा है। गांव गांव में आकर्षक पंडाल और मंच सजाकर स्थापित किये गये श्री गंणेश के बीच वनग्राम से राजस्व ग्राम घोषित किये गये कोपेनकोनाडी में सड़क किनारे हरे भरे जंगल के बीच व्यवस्थापित किये गये प्राचीनकाल के भगवान श्री गंणेंश की भव्य पाषांण प्रतिमा की पूजा के लिए भी दूर दूर से लोग पंहुच रहे हैं।

बडेराजपुर ब्लाक के कोरगांव से महज 3कि.मी.और कोंगेरा कोर्रोबेडा से सटे हुए ग्राम कोपेनकोनाडी में लगभग 4फिट ऊंची बालुई पत्थर से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा कितनी पुरानी है और किस राजा महराजा के काल की है यह तो कोई अता पता नहीं है पर सभी यह बताते हैं की यह प्रतिमा बहुत पुरानी है।गांव के लोग अपने बड़े बुजुर्गो से सूनी हुई बात याद करके बताते हैं की यह मूर्ति गांव के पास की पहाड़ी पर थी जिसे लाकर पहले गांव के एक किसान के खेत में रख दिया गया। कयी दशक तक भगवान गणेश की मूर्ति खेत में ही थी जिसे 3-4वर्ष पूर्व लाकर सड़क किनारे स्कूल के पास खाली पड़े जंगल जमीन में रख दिया गया है। गांव के लोग समय समय पर पूजा पाठ करते भगवान गणेश के प्रतिमा की देखरेख करते हैं।
खुले आसमान तले तेज धूप बरसात ठंड में मौसम की मार झेलते पड़े रहने के कारंण बहुत नरम बालुई पत्थर की बनी प्रतिमा धीरे धीरे स्वत: क्षतिग्रस्त हो रही है वहीं सम्मोहन हेतु भी कुछ अंधविश्वासी लोगों द्वारा चोरी छिपे प्रतिमा को घीसकर उसका चूर्ण ले जाया करते थे जिससे भी बहुत ही सुंदर प्रतिमा कयी जगह से टूट फूटकर क्षतिग्रस्त हो चुकी है। जानकार बताते हैं की इस मूर्ति को सुरक्षित बचाये रखने हेतु और आगंतुकों के सुविधा के लिए मंच एवं भवन बनाने हेतु धनराशि स्वीकृत हुआ था। निर्मांण कार्य प्रारंभ करने पंचायत के द्वारा गिट्टी भी गिरवाया गया था पर यंहा पर एक रूपये का काम नहीं हुआ और यह किसी को पता नहीं की स्वीकृत धनराशि कंहा कैसे समायोजित कर लिया गया। बिश्रामपुरी के ग्राम खल्लारी में भी अतिप्राचीन काल की भगवान श्रीगंणेश की दो प्रतिमा है । जो यह प्रमाणित करता है की बिश्रामपुरी क्षेत्र एवं सटे हुऐ केशकाल क्षेत्र में मां दंतेश्वरी , भगवान विष्णु , भगवान शंकर ,भगवान श्री गणेश की पूजा उपासना आदिकाल से चली आ रही है और देवी देवताओं के उपासकों ने अपने समय में भगवान की सुंदर प्रतिमाओं एवं भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया था।जिन्हे सहेजकर रखना निहायत जरूरी है।