बस्तर मित्र/कांकेर।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा घोषित गाजर घास उन्मूलन जागरूकता सप्ताह के अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र कांकेर के तत्वाधान में गाजर घास उन्मूलन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन सिंगारभाट में आयोजित किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में कृषि विज्ञान केन्द्र के कार्यक्रम सहायक दिनेश सिन्हा द्वारा गाजर घास को पहचानने के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई। गाजर घास का पिछले कुछ वर्षां से प्रक्रोप सभी प्रकार की खाद्यान फसलों, सब्जियां एवं उद्यानों में भी बढ़ता जा रहा है, गाजर घास का पौधा 3 से 4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है तथा एक वर्ष में इसकी 3 से 4 पीढ़ियां पूरी होती जाती है।
वैज्ञानिक डॉ. सी. एल. ठाकुर ने गाजर घास से होने दुष्प्रभाव के बारे में बताया कि गाजर घास के सम्पर्क में आने से मनुष्यों के त्वचा संबंधी रोग जैसे एक्जिमा, एलर्जी, बुखार एवं दमा आदि जैसी बीमारियां हो जाती है। अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य की मृत्यु तक हो जाती है। पशुओं के लिए भी यह खरपतवार अत्यधिक विषाक्त होता है। गाजर घास के तेजी से फैलने के कारण अन्य उपयोगी वनस्पतियां खत्म होने लगती है। जैवविविधता के लिये गाजर घास एक बहुत बड़ा खतरा बनती जा रही है, इसके कारण फसलों की उत्पादकता बहुत कम हो जाती है।
कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बीरबल साहू ने गाजर घास के नियंत्रण के बारे में बताया कि वर्षा ऋतु में गाजर घास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाना चाहिए। अकृषित क्षेत्रों में शाकनाशी रसायन जैसे ग्लायफोसेट 1.5 से 2.0 प्रतिशत या मेट्रीब्यूजिन 0.3 से 0.5 प्रतिशत घोल का फूल आने के पहले छिड़काव करने से गाजर घास नष्ट हो जाती है। गाजर घास का एक पौधा 10 से 25 हजार अत्यंत सूक्ष्म बीज पैदा कर सकता है एवं पूरे वर्ष भर उगता एवं फलता-फूलता रहता है। इस अवसर पर ग्राम सिंगारभाट, पत्थर्री, आतुरगांव एवं व्यासकोंगेरा के कृषक उपस्थित थे।