बस्तर संभाग

महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव से पंगा लेना कांग्रेस को पड़ा था भारी..

कांकेर/बस्तर मित्र।

आजादी के बाद आदिवासी बहुल बस्तर की राजनीति में बस्तर रियासत के तत्कालीन महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव की तूती बोलती थी। प्रवीरचंद जब कांग्रेस में थे, कांग्रेस चुनाव जीतती रही, लेकिन जब से कांग्रेस ने उनसे पंगा लिया, पार्टी को उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

आजादी के बाद अविभाजित बस्तर में हुए पहले तीन विधानसभा चुनावों में प्रवीरचंद भंजदेव की मर्जी के अनुसार जनता ने विधायक चुनकर दिए। 1948 में बस्तर और कांकेर रियासत दोनों को मिलाकर अविभाजित बस्तर जिला बनाया गया था। आजादी के बाद भारतीय गणतंत्र में रियासतों के विलय के बाद भी कतिपय विषयों को लेकर भंजदेव की केंद्र और राज्य सरकार दोनों से मतभेद रहे। प्रवीरचंद भंजदेव ने भी अपनी किताब ष्मैं प्रवीर आदिवासियों का भगवानष् में कांग्रेस से अपने मतभेदों को लेकर विस्तार से लिखा है।

लाला जगदलपुरी की किताब ’बस्तर इतिहास एवं संस्कृति’ में भी एक अध्याय प्रवीरचंद भंजदेव पर समर्पित है। कांग्रेस से उनके मतभेद का प्रभाव 1951 के आम चुनाव से ही दिखना शुरू हो गया था। तब बस्तर की आठ में से छह सीटों पर भंजदेव के समर्थन से निर्दलीय चुनाव जीतकर विधायक चुने गए थे। यही नहीं, बस्तर के पहले सांसद मुचाकी कोसा भी निर्दलीय जीते थे। इस चुनाव के बाद कांग्रेस को प्रवीरचंद भंजदेव की ताकत का अंदाजा लग गया और सुलह कर उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया गया। 1953 में उन्हें बस्तर जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी बना दिया गया। हालांकि एक साल बाद ही उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया लेकिन कांग्रेस में बने रहे। 1957 के विधानसभा चुनाव में बस्तर की सभी आठ सीटों पर कांग्रेस जीती। भंजदेव भी जगदलपुर सीट से चुनाव जीतकर कांग्रेस के विधायक निर्वाचित हुए लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने 1959 में विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।

इसके पहले 1953 में कोर्ट आफ वार्ड्स के अंतर्गत उनकी निजी संपत्ति सरकार द्वारा ले ली गई थी, जिसे मुक्त कराने के लिए वे दस साल तक लड़ते रहे। इतिहासकार एवं शिक्षाविद् प्रोफेसर बीएल झा बताते हैं कि 11 फरवरी, 1961 को दिल्ली से बस्तर लौटते समय ओडिशा सीमा के नजदीक धनपुंजी में उन्हें गिरफ्तार कर नरसिंहगढ़ जेल भेज दिया गया। बाद में सभी आरोप गैर प्रमाणित होने पर दो माह बाद वे जेल से रिहा कर दिए गए। इसके एक साल बाद 1962 के विधानसभा चुनाव में जो हुआ उसकी कल्पना कांग्रेस को भी नहीं रही थी।

क्या हुआ था 1962 के चुनाव में

1962 के विधानसभा चुनाव में बस्तर की 10 में से नौ सीटों पर प्रवीरचंद भंजदेव और कांकेर के राजा भानुप्रपातदेव के आह्वान पर निर्दलीय विधायक चुने गए थे। एकमात्र सीट बीजापुर से कांग्रेस के हीरा शाह जीते थे। सात सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। बताया जाता है कि हीरा शाह बस्तर राजपरिवार के करीबी थे, इसलिए वहां उनके विरोध में प्रत्याशी खड़ा ही नहीं किया गया था। उस चुनाव में पूरे मध्य प्रदेश में 39 निर्दलीय विधायक बने थे, जिनमें से नौ बस्तर से थे। 1966 में राजमहल गोलीकांड में प्रवीरचंद भंजदेव की मौत के एक साल बाद 1967 के आम चुनाव में भी कांग्रेस को बस्तर की जनता की नाराजगी झेलनी पड़ी और बस्तर की 11 में से दो सीटें ही कांग्रेस जीत पाई। पांच पर निर्दलीय और चार सीटों पर छोटे दलों ने जीत दर्ज की थी।

कौन थे प्रवीरचंद भंजदेव

प्रवीरचंद भंजदेव का जन्म 25 जून, 1929 को शिलांग में हुआ था। उनकी माता स्वर्गीय प्रफुल्ला कुमारी देवी बस्तर की महारानी थीं। 1936 में महारानी प्रफुल्ला देवी के निधन के बाद प्रवीरचंद भंजदेव को औपचारिक रूप से बस्तर रियासत की गद्दी पर बिठाया गया। प्रवीरचंद की उच्च शिक्षा इंग्लैंड में हुई थी। वे अर्थशास्त्र, भाषा विज्ञान, नृविज्ञान, दर्शन और संस्कृत के अच्छे जानकार व विद्वान थे। वे बस्तर रियासत के सबसे लोकप्रिय महाराजा थे।




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Kiran Komra

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