
इन दिनों बस्तर के जंगलों में चटख लाल केसरिया रंग की फूलों की बहार है। पलाश अपनी विशिष्ट रंग और खूबसूरती के चलते पेड़ों पर लाल और पीले रंग के फूल लोगों को बरबस ही आकर्षित करती है। जगह-जगह खिले नजर आने वाले यह फूल आखों को अलग ही सुकून देती है। लेकिन होली में इस फूल का महत्व और भी बढ़ जाता है। विशुद्ध रूप से प्रकृति निर्मित इस रंग से होली का त्योहार और भी रंगीन नजर आता है। भले ही आज इसका उपयोग कम नजर आता है लेकिन इनके गुणों की वजह से आज भी इनके रंगों का महत्व कायम है।
रासायनिक रंगों के इस दौर में आज भी कई जगह पलाश के फूलों की डिमांड है। इसके सिंदूरी लाल रंग की काफी मांग है। इसके अलावा अमलतास, हरसिंगार के फूलों के रंग से आज भी होली खेलने की परंपरा कायम है। इसकी खास वजह भी है। पलाश के फूल से बने प्राकृतिक रंग से लोग होली खेलते हैं। प्राचीन काल में इसके फूलों का इस्तेमाल कपड़ों को रंगने के लिए किया जाता था।
वसंत ऋतु के आगमन होते ही जंगलों में खिलने वाले टेसू, पलाश हरसिंगार और अमलतास के रंग बिरंगी फूल हर तरफ नजर आने लगते हैं। शहर से निकलते ही जंगलों में फूलों की बहार आने लगी है, जिससे वातावरण की सुंदरता बढ़ गई है। होली के दौरान गाए जाने वाले गीतों में भी पलाश या टेसू के फूल का जिक्र मिलता है। कविता में भी फूलों का गुणगान किया है।
बृज की होली से कौन परिचित नहीं है। कृष्ण की नगरी बृज में टेसुओं अथवा पलाश के रंगों से होली खेली जाती थी। इतिहास पर नजर डालें तो इनकी फूलों से कभी राजा महाराजाओं द्वारा भी होली खेली खेलने का जिक्र मिलता है। रासायनिक रंगों की जगह प्रकृतिक रंगों का उपयोग होता था। इसके रंग कई दिनों तक बिना किसी नुकसान के नजर आते थे।
पलाश अथवा टेसू के फूलों के कई तरह के फायदे हैं। इसलिए इसे ब्रह्मवृक्ष भी कहा जाता है। इसके फूलों अथवा तने में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। इनके पत्ते, टहनी, फल और जड़ का आयुर्वेदिक में महत्व है। आयुर्वेद के अनुसार, रंग बनाने के अलावा इसके फूलों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चमक बढ़ती है। इसकी फलिया कृमिनाशक का काम भी करती हैं।