
बीजापुर जिले का एक ऐसा गाँव पामेड़ जो कभी नक्सलियों की राजधानी के रूप में जाना जाता था, सरकार व जवानों की कड़ी मेहनत के चलते अब वहां विकास तेजी से बढ़ रहा है। दक्षिण बस्तर का नाम सुनते ही लोगों के मन में गोलियों की तड़तड़ाहट के साथ ही निर्दोष ग्रामीणों की हत्या से लेकर अन्य कई तस्वीरे सामने आ जाती हैं। जिसके कारण आमजनों के अंदर ख़ौफ़ देखने को मिलता है, वही दक्षिण बस्तर के अंतिम छोर में पुलिस के द्वारा चलाये गए अभियान के चलते अब वहां खून खराबा नही बल्कि यात्री बसों के हॉर्न सुनाई दे रहे हैं। कल तक जो इलाका नक्सलियों के कब्जे में था , अब उस इलाके में पुलिस ने अपनी पैठ जमाते हुए कैम्प के साथ ही वहां के ग्रामीणों को बेहतर सुविधा उपलब्ध करा रहे है, जिसका सबसे सुखद परिणाम यह आ रहा है कि अब बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र के अंतिम गाँव में बसे पामेड़ में अब बसों का आवाजाही शुरू हो गया है।
बीजापुर जिले का एक ऐसा गाँव पामेड़ जो कभी नक्सलियों की राजधानी के रूप में जाना जाता था, सरकार व जवानों की कड़ी मेहनत के चलते अब वहां विकास तेजी से बढ़ रहा है, पामेड़ इलाके की बात करे तो कभी वहां पर दुपहिया वाहन भी देखने को लोग तरस जाते थे,बीजापुर और तेलंगाना की सीमा पर बसा यह पामेड़ गाँव, उस इलाके के 7 पंचायतों को भी जोड़ता है, सरकार के साथ ही पुलिस जवानों के अथक प्रयास से बीते 4 माह के अंदर इस गाँव मे विकास की बड़ी गाथा लिखी गई है, इस इलाके में सड़क और कैंप के साथ ही मूलभूत सुविधाओं का विस्तार भी तेजी से शुरू हो गया है, जिसकी शुरुआत इस इलाके के ग्रामीणों के लिए शुरू हुई यात्री बस की सेवा है, बस सेवा के चलते अंदरूनी इलाकों के ग्रामीणों को पहले तेलंगाना से होते हुए अपने गृहगांव तक जाना पड़ता था, लेकिन अब वे बीजापुर से सीधे पामेड़ अपने घर पहुंच रहे हैं। अब उसी पामेड़ में 30 वर्षो के बाद यात्री बस की सेवा शुरू हो गई है।
जिन इलाकों में कभी दुपहिया वाहन तक सही रूप से नहीं चलाते थे अब उन इलाकों में चार पहिया वाहनों के साथ यात्री बसें दौड़ने लगी है, 50 वर्षो तक जिन सुविधाओं के लिए ग्रामीण तरस रहे थे वह सारी सुविधा पामेड़ इलाके के ग्रामीणों के लिए बहुत तेजी से बढ़ रही है, इस इलाके में आधार कार्ड, राशन कार्ड के अलावा राशन दुकान भी गांव में संचालित की जा रही है, बताया जा रहा है कि नक्सलियों के ख़ौफ़ के चलते पामेड़ में काम करने वाले जवानों के लिए वेतन से लेकर अखबार तक हेलीकॉप्टर से मदद से भेजा जाता था, लेकिन अब सड़क बनने और बस सेवा के शुरू हो जाने से जवानों का यह कठिन सफर खत्म हो चुका है, जवानों और ग्रामीणों के लिए इस इलाके में मोबाइल कनेक्टिविटी का भी विस्तार भी हो चुका है जिससे वह अपने परिवार वालों से बात कर सकते है।