
गढ़वा जिले के किसान अब परंपरागत खेती से बाहर निकलकर नई-नई फसलों की खेती कर अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं. इस क्रम में जिले के कुछ किसानों ने स्ट्रॉबेरी की खेती की है. हिमाचल प्रदेश की तरह झारखंड के गढ़वा में भी बालू युक्त दोमट मिट्टी होने के कारण यह खेती किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है.
गढ़वा सदर प्रखंड की बीरबन्धा पंचायत क्षेत्र के किसान सहेंद्र और प्रीतम ने परंपरागत खेती को छोड़ अपनी बंजर भूमि में स्ट्रॉबेरी की खेती की है. कुल 10 एकड़ भूमि में पांच लोगों के साथ मिलकर फल और सब्जियों की खेती कर आज सालाना लाखों रुपये की आमदनी कर रहे हैं, लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण स्ट्रॉबेरी की खेती है. स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत सितंबर से होती है जो मार्च अंत तक की जा सकती है. क्षेत्र के कई किसान आज स्ट्रॉबेरी की खेती कर खुशहाल बन रहे हैं. ये करिश्मा जिला कृषि विभाग के जागरुकता अभियान के कारण हुआ है.
इस संबंध में प्रखंड के कृषि तकनीकी प्रबंधक अजय साहू ने कहा कि हिमाचल की तरह यहां भी दोमट मिट्टी है. हालांकि हिमाचल में तो सालोंभर स्ट्रॉबेरी की खेती होती है, लेकिन गढ़वा में किसान चार माह तक स्ट्रॉबेरी की खेती कर सकते हैं. स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सरकार द्वारा कई तरह की सुविधा दी जा रही है. जिसका लाभ उठाकर क्षेत्र के किसान आगे बढ़ रहे हैं.
गढ़वा में स्ट्रॉबेरी की खेती न केवल किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी हो सकती है, बल्कि यह क्षेत्रीय कृषि को भी समृद्ध बना सकती है. इस खेती को बढ़ावा देने से किसानों को नए आय स्रोत मिल सकते हैं और कृषि क्षेत्र में नए अवसर खुल सकते हैं.