
छतीसगढ़ के धमतरी जिले में एक अनोखी परंपरा है. यहां के सिहाना अंचल का वनवासी अपन परिजनों की मौत के बाद जो समाधी बनाते है वो बेहद खास होता है. समाधी बनाते समय मृतक के शौक का खयाल रखा जाता है. समाधी का आकार उसके शौक को दिखाता है.
इस अंचल के गावों में कहीं कार, कहीं ट्रक, कहीं मछली के आकार वाली समाधियां नजर आ जाएंगे, जो ध्यान भी खीचती है और हैरान भी करती है. सिहावा अंचल. वैसे तो सप्त ऋषि पर्वतों, महानदी के उद्गम, खूबसूरत जंगल और सीतानदी टाइगर रिजर्व के नाम से जाना जाता है, लेकिन इस अंचल की एक और अनोखी प्रथा है जो आपको शायद ही कही और दिखाई देगी.
ये बैहद हैरान करने वाली तो है, लेकिन उतनी ही दिलचस्प भी है. सिहावा के आप-पास के गांवों की तरफ आप जब निकलेंगे तो देखेंगे कि जगह-जगह समाधीयां बनी है. इन समाधियों के बीच आपको अनोखी आकृति वाली समाधीयां भी दिखाई देंगी.
गांव में बनी समाधियों में कहीं कार जैसा, कहीं जीप जैसी, कहीं मकान, कहीं मछली जैसी डिजाइन नजर आ जाएगी. इन मठों में मृतक का नाम, जन्म और मृत्यु की तारीख भी उकेरी जाती है. साथ ही साथ समय-समय पर इन पर रंग रोगन भी किया जाता है. तीज त्योहार या शादी जैसे खास मैको पर यहां मृतक के परिजन दीप भी जलाते है. ये अनोखी समाधीयां मन को कौतूहल से भर देती है. इस इलाके के लगभग सभी गांवों में इस तरह की समाधियां है.
दुनिया भले 5जी 6जी स्पीड से 21 सदी में दौड़ रही है, लेकिन वनवासी अपनी इस सदियों पुरानी प्रथा को आज भी संजोए हुए है. लोग बताते है कि इस अनोखी प्रथा के पीछे ये मान्यता है कि इस तरह के समाधी या मठ मरने वाले की आत्मा को सुकुन और शांति देते है.