

जिला उत्तर बस्तर कांकेर मुख्यालय में ही एक ऐसा जिला स्तर का दफ्तर है, जहां अधिकतर एक चपरासी के ही दर्शन होते हैं। अर्थात जिला स्तर के इतने बड़े ऑफिस को एक चपरासी ही किसी तरह मैनेज करता दिखाई देता है।
बाबू का अता. पता नहीं रहता। ऐसा कई दिनों तक इसे देखने के बाद आज सोमवार को भी जब हमने इस कार्यालय में प्रवेश कर देखा तो आश्चर्य हुआ कि आज भी वहां चपरासी राज ही चल रहा है। आज 4 अक्टूबर सोमवार को कोई भी शासकीय छुट्टी नहीं है, इसके बावजूद खेल एवं युवा कल्याण विभाग के जिला स्तरीय कार्यालय में छुट्टी का माहौल है और वक्त जरूरत से निपटने के लिए उसी गरीब चपरासी को बिठा दिया गया है।
अब तक तो यही सुनने में आता था कि गांवों के स्कूलों में अधिकतर शिक्षक तथा हेड मास्टर नदारद रहते हैं और घंटी बजाने से लेकर हर काम चपरासी को सौंप कर जाते हैं । बस्तर के सातों जिलों में ऐसे दृश्य अधिकतर छोटे गांव स्थानों में देखे जाते हैं लेकिन कांकेर जिला मुख्यालय यहां तो ऐसी मनमानी नहीं होनी चाहिए, फिर भी देख लीजिए यहां भी ऐसा ही हो रहा है, मानो यह जिला नहीं बल्कि ग्राम पंचायतों जैसे दृश्य देखकर विश्वास करना मुश्किल है कि कांकेर को जिला बने 23 साल हो चुके हैं ए 25 मई 1998 को कांकेर जिला बना था लेकिन यहां कुछ अधिकारियों तथा कर्मचारियों की मानसिकता अभी भी ग्राम पंचायत स्तर की ही बनी हुई है।

संलग्न चित्र में शानदार टेबल. कुर्सी पर इसके हकदार एल.डी नागवंशी सहायक ग्रेड 3 के नाम का त्रिकोण लकड़ी का गुटका साफ दिखाई दे रहा है। स्टील आलमारी के हैंडल को देखकर कहना मुश्किल है कि बाबू साहब उसे बंद कर गए हैं अथवा खुला छोड़ गए हैं, टेबल पर स्टेपलर, केलकुलेटर और अन्य कागजात अपनी दुर्दशा पर रो रहे हैं । फाइलें तथा अन्य कागजात भी अस्तव्यस्त दिखाई दे रहे हैं। इतने ठाठ बाट वाला बैठने का इंतजाम भी बाबू साहब को पसंद नहीं है, ऐसा लगता है,आश्चर्य कि बात है, इनके अधिकारी भी इनकी इस लापरवाही पर ध्यान नहीं देते और चपरासी प्रशासन चलता रहता है।