
छत्तीसगढ़ की सियासत में ‘युक्ति युक्तकरण’ नीति पर बवाल कम होने का नाम नहीं ले रहा है. भाजपा सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों के पुनर्गठन की घोषणा के बाद कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है. ‘शिक्षा न्याय आंदोलन’ के बैनर तले कांग्रेस ने 9 जून से बीईओ कार्यालयों का घेराव किया, जो अब 25 जून तक चलने वाली पदयात्राओं में बदल चुका है.
कांग्रेस का कहना है कि इस नीति से दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में स्कूलों की संख्या कम हो सकती है और इससे वहां पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य प्रभावित होगा. पूर्व सीएम भूपेश बघेल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, पूर्व मंत्री अमरजीत भगत और टी.एस. सिंहदेव जैसे वरिष्ठ नेता इस आंदोलन में सक्रिय हैं. बघेल ने सोशल मीडिया पर इसे “भाजपा सरकार का शिक्षा विरोधी चेहरा” बताया, जबकि बैज ने कहा, “हम हर घर तक पहुंचेंगे और भाजपा की असलियत उजागर करेंगे.” बीईओ कार्यालयों के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जमकर नारेबाजी की और शिक्षक समुदाय को साथ जोड़ने की कोशिश की. यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के कार्यकर्ता भी गांवों में जाकर लोगों को इस नीति के दुष्प्रभाव के बारे में बता रहे हैं.
भाजपा इसे “प्रशासनिक सुधार” और “शिक्षा संसाधनों के बेहतर उपयोग” का हिस्सा बता रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह मुद्दा ग्रामीण जनता और शिक्षक समुदाय के बीच गहराई से जुड़ गया, तो यह आगामी नगरीय निकाय और विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है. शिक्षक संघों का कहना है कि उनका विरोध नीति नहीं, इसकी प्रक्रिया और विसंगतियों के खिलाफ है. उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में इससे ख़राब असर का भी हवाला दिया है. कांग्रेस इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए “शिक्षा” को केंद्र में रखकर मैदान पर आ रही है, जबकि भाजपा सरकार कहती है कि ये केवल प्रशासनिक सुधार और संसाधन उपयोग की सफलता की दिशा में एक कदम है.
शिक्षा विभाग के सचिव सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी ने स्पष्ट किया कि युक्तिकरण का लक्ष्य शिक्षकों को हटाना नहीं, बल्कि उन स्कूलों से हटाकर पैदल-पहुंच वाले स्कूलों में लगाया जाएगा जहां शिक्षक नहीं हैं. प्रदेश के 23 शिक्षक संघों ने मिलकर राज्य सचिवालय घेरने तक उग्र विरोध किया था. इस आयोजन में लगभग 10,000 शिक्षक शामिल थे, जिन्होंने बड़े पैमाने पर नारेबाजी की और तत्काल नीति वापस लेने की मांग की.
मामला केवल पदों की गिनती तक सीमित नहीं, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता तक पहुंच गया है. संघों ने चेताया कि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शिक्षक-छात्र अनुपात भंग होगा और पढ़ाई का स्तर गिर सकता है. इस नीति से करीब 40,000 शिक्षक पदों पर खतरा मंडरा रहा है और लगभग 30,000 स्कूलों पर इसका असर पड़ेगा. सरकार की सफाई: ‘पुनविभाग ने बताया कि 211 सरकारी स्कूलों में अब विद्यार्थी नहीं हैं, लेकिन वहां अभी भी शिक्षक तैनात हैं; इन शिक्षकों को अब जरूरत वाले स्कूलों में शिफ्ट किया जाएगा. नीति का आधार RTE 2009 और NEP 2020 है, और दावा किया गया है कि शिक्षकों और संसाधनों का “संतुलित पुनर्वितरण” किया जा रहा है, न कि पदों का समाप्तिकरण किया जा रहा है.