
पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है और पुरी को पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है. यह हिंदू धर्म के पवित्र चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी में से एक है. इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत इस बार 27 जून से होने जा रही है और इसका समापन 5 जुलाई को होगा. पंचांग के मुताबिक, हर साल ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होती है. यह भव्यरथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है.
कहते हैं कि भगवान अपने भक्तों के लिए हर युग में अलग अलग अवतार लेकर आए. सभी अवतारों में यह एक ऐसा अवतार है जिसमें सिर्फ उनकी सिर्फ बड़ी बड़ी आंखें नजर आती हैं ताकि वह अपने हर भक्त को देख सकें और उन्हें दर्शन दे सके. इसी भक्ति से संबंधित पुरी धाम की एक कथा भी काफी प्रचलित है. हालांकि, यह कथा भगवान जगन्नाथ की अनासरा पूजा से भी जुड़ी हुई है.
कथा कुछ इस प्रकार है कि 16वीं सदी में महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में गणपति भट्ट नाम के एक मूर्तिकार रहते थे. वे भगवान गणेश के बहुत बड़े भक्त थे. हर समय भगवान गणेश की पूजा और भक्ति में ही लगे रहते थे. एक दिन वे तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े. उन्होंने कई जगहों की यात्रा की और अंत में ओडिशा के पुरी पहुंचे. जब वे पुरी पहुंचें तो उन्हें बहुत दुख हुआ क्योंकि वहां भगवान गणेश का कोई मंदिर ही नहीं था. वे भगवान गणेश के दर्शन करने के लिए बहुत उत्सुक थे, लेकिन वह मुमकिन नहीं हो पाया. इससे वे बहुत निराश हो गए और बिना दर्शन किए प्रसाद लिए वापस चले गए. जिसके कारण उनकी चार धाम यात्रा भी अधूरी रह गई.
लौटते समय रास्ते में उन्हें एक ब्राह्मण युवा मिला. उस ब्राह्मण ने गणपति भट्ट को उदास देखकर पूछा, 'आप इतने दुखी क्यों हैं?' गणपति भट्ट ने बताया, 'मैं गणेश जी को देखने आया था, लेकिन यहां उनका कोई मंदिर नहीं है. अब मैं खुद गणेश जी की मूर्ति बनाऊंगा.' यह सुनकर ब्राह्मण हंस पड़ा और बोला, 'तो फिर देर क्यों कर रहे हो? अभी जाओ और मूर्ति बनाना शुरू कर दो.' पूरी प्रेरणा के साथ गणपति भट्ट मूर्ति बनाने लगे, लेकिन उनकी बनाई हुई मूर्ति में हर बार कुछ अजीब हो जाता. कभी मूर्ति की आंखें बहुत बड़ी हो जातीं तो कभी आंखें गोल हो जाती और कभी उनके हाथ में बांसुरी आ जाती. वे जिस तरह से मूर्ति बनाना चाहते थे, वैसी बन नहीं पा रही थी. तब ब्राह्मण ने कहा, 'यहां गणेश जी का मंदिर नहीं है. आप ध्यान लगाइए और गणेश जी को याद कीजिए. जो तस्वीर ध्यान में आए, वैसे ही मूर्ति बनाइए.'
फिर भट्ट जी से उस ब्राह्मण ने पूछा, 'क्या आपने जगन्नाथ मंदिर में दर्शन किए?' भट्ट जी ने जवाब दिया, 'नहीं, जब मुझे पता चला कि वहां गणेश जी नहीं हैं, तो मैं बिना दर्शन किए वापस आ गया.' ब्राह्मण ने कहा, 'एक बार जाकर जरूर दर्शन करें, शायद आपके गणेश जी वहीं हों.' ब्राह्मण की बात सुनकर भट्ट जी मंदिर की ओर चल पड़े. मंदिर में उस वक्त 'अनासरा विधि' चल रही थी. यह ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा का दिन था. इस विधि के दौरान भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और सुभद्रा को स्नान प्रांगण में लेकर जाया जाता है और 108 घड़ों के पानी से उनको स्नान कराया जाता है. स्नान के बाद उन्हें नरम कपड़े से सुखाया जाता है और उस कपड़े को इस तरह से बांधा जाता है कि भगवान का चेहरा हाथी की सूंड जैसा दिखाई देता है और इसे ही भगवान जगन्नाथ का ‘गजानन वेश’ कहा जाता है.