छत्तीसगढ़

स्कूल पाठ्यक्रम में नवाचार के लिए ब्लॉग लिखने लगे हैं शिक्षाकर्मी ‘हमारे नायक‘ के एक हजार ब्लॉग पूरे....

रायपुर,

लॉकडाउन एवं कोरोना संक्रमण के आतंक ने लोगों को अपने-अपने घर के भीतर कैद कर रखा था स्कूल बंद थे। तब कुछ शिक्षक हमारे नायक बनकर उभरे। उन्होंने राज्यभर में बच्चों को सिखाने का काम जारी रखा। ‘हमारे नायक‘ ने cgschool.in के मुखपृष्ठ पर रोज दो ब्लॉग लिखकर अपलोड किया। बुधवार को इसकी हजारवीं कड़ी प्रकाशित होगी। यह ऐसी योजना बन गई है जिस पर रुपए भी खर्च नहीं हुआ,लेकिन काम करोड़ों रुपए का हुआ।

राज्य की प्राथमिकताओं एवं आवश्यकताओं के अनुसार इसमें थीम का चयन कर उन पर ब्लॉग लिखा जाता है। राज्यभर के शिक्षक एवं अधिकारी अपने आपको हमारे नायक में शामिल किए जाने पर गर्व महसूस करते हैं। हमारे नायक में अपने कार्यों पर ब्लॉग लिखे जाने स्व.प्रेरित शिक्षक बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। बच्चों के सीखने के लिए सभी प्रकार से सहयोग कर रहे हैं। ‘पढई तुंहर दुआर‘ के दौरान शिक्षकों को प्रोत्साहित कर सामने लाने हेतु ‘हमारे नायक‘ ने एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, प्रमुख सचिव डॉ.आलोक शुक्ला की सीधी निगरानी होती है।

खास बातें:- 01) राज्य में ब्लॉग लेखकों का चयन किया। 02) राज्य में ब्लॉग लेखकों की बड़ी टीम बनाई। 03) यह टीम हिन्दी अंग्रेजी, छत्तीसगढ़ी, संस्कृत एवं विभिन्न आदिवासी भाषाओं में भी लिखती। 04) प्रतिमाह अलग-अलग थीम पर काम कर रहे लोगों का चयन। 05) प्रमुख थीम,ऑनलाइन कक्षा, लाउडस्पीकर कक्षा, पढ़ई तुंहर पारा, ऑगमेंटेड रियलिटी शिक्षण तकनीक, स्टोरीवीवर की वेबसाइट में कहानियां लिखना और अनुवाद करनाए शैक्षणिक खिलौना बनाने वाले, प्रिंटरिच वातावरण, मोहल्ला क्लास। 06) 30 कुशल ब्लॉग लेखक चयनित नायकों के उत्कृष्ट कार्यों को अलग भाषा और बोलियों में अपने शब्दों में पिरोया। 07) प्रदेश के प्रमुख 5 बोलियों छत्तीसगढ़ी, हल्बी, गोंडी, सरगुजिया और कुड़ूख में अनुवाद के साथ ब्लॉग।

इस योजना तहत जिसमें एक रुपए का खर्च भी नहीं आया, लेकिन इस एक अकेली योजना ने क्षेत्र में ऐसा प्रभाव डाला जो करोड़ों रुपए खर्च करके लागू की गयी योजना भी शायद न दे पाए। एक हजार ब्लॉग का पूरा होना इस बात का प्रमाण है कि योजनाओं की कमान हमारे शिक्षक संभाले हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन के कारण सभी स्कूल लंबे समय से बंद थे इसलिए यह आवश्यक हो गया था कि बच्चों को उनके घरों में रहकर पढ़ने-लिखने और सीखने का अवसर प्रदान किया जाए।




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Kiran Komra

पत्रकारिता के लिए समर्पित



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