आदिवासी समुदायों ने आदिवासियों के जबरदस्त समर्थन से झारखंड की सत्ता में काबिज़ हुई संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा द्वारा दुनिया के आदिवसियों की संरक्षा व उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने को लेकर साल 1994 में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस की घोषणा की गई थीए बीते वर्षों में आदिवासी समुदाय के लोगों में अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ी है। कई देशों की सरकारें संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा पत्र के दिशा निर्देशों का अनुपालन करते हुए आदिवासी समुदाय और उनके सवालों को लेकर गंभीर हुईं हैं।
वहीं कई ऐसे भी देश हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ की उक्त घोषणा अनुशंसाओं से बहुत लेना देना नहीं है। जिनमें भारत का भी नाम प्रमुखता से शुमार है। कहा जाता है कि शुरू में तो तत्कालीन भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ को यह रिपोर्ट दी थी कि नार्थईस्ट को छोड़कर यहां आदिवासी हैं ही नहीं। बाद में
आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने आवाज़ उठाने पर सरकार ने स्वीकार किया कि यहां आदिवासी हैं। वर्तमान की केंद्र सरकार से लेकर कई राज्यों कि सरकारों का आज भी आदिवासी समुदाय और उनके मुद्दों को लेकर न सिर्फ उपेक्षा का भाव बरकार हैए बल्कि दमनात्मक रुख है। आये दिन आदिवासी समुदाय को अपने जलए जंगलए ज़मीनए खनिज व प्राकृतिक संसाधनों की बेलगाम लूट के खिलाफ आवाज़ उठाने पर ष्विकास विरोधीष् करार देकर राजद्रोह जैसे मुक़दमें लगाकर जेलों में डाल दिया जाता है। झारखण्ड प्रदेश के रघुवर दास सरकार ने तो पत्थलगड़ी आन्दोलन का समर्थन करने वाले दर्जनों आदिवासी गावों के 1500 से अभी अधिक लोगों पर एक साथ राजद्रोह का मुकदमा ठोक दिया था।
एक विडंबना यह भी है कि विश्व आदिवासी दिवस को भी यहां की सरकारेंए अधिकांश राजनीतिक दल व नेताओं ने महज आदिवासी समुदाय के वोटरों को रिझाने की रस्मादयागी के दिखावे में तब्दील कर दिया है। जहां भव्य रंगारंग सरकारी व गैर सरकारी आयोजनों में आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ नाच गान का फोटो सेशन करते हुए जिम्मेवारियों से छुटकारा पा लिया जा रहा है। लेकिन दूसरी ओरए इस दिवस के संदेशों से प्रेरित होकर देश के आदिवासी समुदाय के लोग संविधान द्वारा उनकी संरक्षा और विकास हेतु दिए गए विशेषाधिकारों को लेकर दिनों दिन गंभीर होते जा रहें हैं।
इसका एक नज़ारा 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर झारखण्ड के आदिवासी समुदाय ने प्रदर्शित किया। इस दिवस पर आयोजित कई रैलीए जनसभा और संगोष्टियों में हमेशा की तरह लोगों ने अपने पारंपरिक परिधानों में मांदर.नगाड़े बजाते हुएए नाच गान के साथ.साथ आदिवासी अधिकारों पर हो रहे हमलों के खिलाफ आवाज़ बुलन्द की। झारखण्ड की राजधानी रांची स्थित फादर कामिल बुल्के सभागार में आयोजित ष्पांचवी अनुसूची और स्वशासनष् विमर्श कार्यक्रम में आज के आदिवासी प्रश्नों को मुखरता के साथ उठाया गया। ऑल इंडिया पीपुल्स फोरमए झारखण्ड व हॉफमैन लॉ एसोसिएशन ने इस संयुक्त विमर्श का आयोजन किया था। जिसमें आदिवासी मामलों के कई विशेषज्ञों के अलावा इन मुद्दों पर सक्रिय बुद्धिजीवियों व सोशल एक्टिविस्टों ने झारखण्ड में आदिवासी समुदायों के विशेष संरक्षण हेतु बनी संविधान की पांचवी अनुसूची को मजबूती से नहीं लागू किये जाने का सवाल उठाया। साथ की संसद द्वारा 1996 में पारित ष्पेसाष् कानून के तहत प्रदान आदिवासी समुदाय की ष्स्वायत्त स्वशासन परम्पराष् को लागू करने में असफल रहे राज्यपाल व सरकार समेत पूरे प्रशासनिक तंत्र की साजिशपूर्ण भूमिका की पर सवाल खड़ा किया।