

आदिवासियों के सांस्कृतिक सामाजिक नैतिक शिक्षा का केंद्र गोटूल को घोटूल लिखना उचित नहीं है। गोटूल के बारे में विभिन्न संचार माध्यम, लेख, पत्र-पत्रिकाओं तथा अन्य माध्यमों में आदिवासी संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग गोटूल को घोटूल लिखे जाने पर रोक लगाने की मांग राज्यपाल, मुख्यमंत्री से करते हुए आदिवासी समाज युवा प्रभाग के प्रदेश उपाध्यक्ष ललित नरेटी ने कहा, कि समाज का पहचान उसकी संस्कृति, परंपरा, भाषा है। यदि उनके किसी भी पहलू को गलत ढंग से प्रसारित किया जाता है, तो यह उचित नहीं है। आदिवासी समाज में गोटूल का महत्वपूर्ण स्थान है जो प्राचीन समय से ही आदिवासी समाज का ग्राम में व्यवस्था संस्कृति, परंपरा, गीत, नृत्य का शैक्षणिक केंद्र है। जिसके माध्यम से आदिम समुदाय अपने रुढ़िगत परंपरा, पारंपरिक ज्ञान, रहन-सहन नैतिकता व अन्य कलाओं को अपनी आने वाली पीढ़ी को संवाहित करता है। आदिवासी समुदाय का महत्वपूर्ण अंग होने के कारण गोटूल का एक अलग पहचान है।
नरेटी ने आगे कहा कि गोटूल का शाब्दिक अर्थ गो (गोक्) + टूल (स्थायी स्थान) अर्थात ज्ञान का स्थाई स्थान या केंद्र जहां पूर्व में शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी, तो इसी के माध्यम से समस्त शिक्षा दी जाती थी। किंतु कुछ अल्प ज्ञानी या अति उत्साही लेखकों द्वारा तथा विभिन्न समाचार माध्यम, पाठ्य-पुस्तक व समय-समय पर प्रसारित होने वाले शासकीय पत्रों में गोटूल उनके स्थान पर घोटूल शब्द प्रकाशित करते है। यदि किसी संस्कृति से संबंधित कोई महत्वपूर्ण पहलू का इस तरह गलत उच्चारण यह प्रकाशन किया जा रहा है। तो निश्चित रूप से सांस्कृतिक हमला है जो कि उचित नहीं है। प्रदेश उपाध्यक्ष ललित नरेटी ने शासन की विभागों का ध्यानाकर्षण किया और उचित शब्द गोटूल लिखने व प्रकाशित करने हेतु निर्देश किया जावे।
