कांकेर/बस्तर मित्र
अखिल भारतीय किसान सभा ने कहा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली अहंकारी भाजपा सरकार को हार स्वीकार करने और तीन किसान विरोधी, जन विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक कानूनों को निरस्त करने की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके लिए किसान सभा देश के उन लाखों किसानों, खेत मजदूरों और कामगारों को बधाई देती है, जिन्होंने इन अधिनियमों के खिलाफ, अत्यधिक दमन के बावजूद एक वर्ष से अधिक समय तक दृढ़ संघर्ष का नेतृत्व किया है और इस ऐतिहासिक जीत के लिए महान बलिदान किया है। भारत की जनता ने इस संघर्ष में किसानों पर विश्वास जताया और समर्थन में बड़े पैमाने पर सामने आए।
कल यहां जारी एक बयान में किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक ढवले और महासचिव हन्नान मोल्ला ने कहा है कि इस ऐतिहासिक किसान संघर्ष की अन्य मूलभूत मांग सभी किसानों की सभी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य जो उत्पादन की वास्तविक लागत सी.2 के डेढ़ गुने के आधार पर तय हो, देने की गारंटी अभी भी पूरी नहीं हुई है। इस मांग को पूरा करने में नाकामी ने भारत में कृषि संकट को और बढ़ा दिया है। पिछले 25 वर्षों में 4 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है। जिनमें से मोदी के नेतृत्व वाले भाजपा शासन काल के पिछले 7 वर्षों में करीब 1 लाख किसानों ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली है।
किसान सभा नेताओं ने कहा है कि प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद भी सबको सतर्क रहना होगा और संसद से कानूनों के निरस्त होने की प्रतीक्षा करनी होगी। यदि प्रधानमंत्री यह मानते हैं कि उनकी घोषणा से किसानों के संघर्ष का अंत हो जाएगाए तो वे भुलावे में हैं। यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा। जब तक कि लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने के लिए अधिनियम पारित नहीं हो जाता और बिजली संशोधन विधेयक और श्रम संहिताएं वापस नहीं ले ली जाती। यह आंदोलन तब तक जारी रहेगाए जब तक कि लखीमपुर खीरी और करनाल के हत्यारों को सजा नहीं दिलाई जाती। उन्होंने कहा कि यह जीत कई और संयुक्त संघर्षों को आगे बढ़ाएगी और नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के प्रतिरोध का निर्माण करते हुए किसान विरोधी एवं मजदूर.कर्मचारी विरोधी भाजपा को कई और पराजय देखने होंगे।