बस्तर संभाग

संविधान सभा में आदिवासियों के लिये आवाज उठाने वाले ‘‘संविधान पुरुष‘‘ ठा. रामप्रसाद पोटाई ...

कांकेर/बस्तर मित्र

26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान के प्रारूप को स्वीकार किया था। जिसे डॉक्टर बी.आर अंबेडकर की अध्यक्षता में ड्राफ्टिंग कमेटी ने तैयार किया था। इसी रूप में संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना। कांकेर रियासत उत्तर बस्तर के गांव कन्हारपुरी के रहने वाले ठा. रामप्रसाद पोटाई भी संविधान सभा के सदस्य थे। उन्हें रियासत के प्रतिनिधि के तौर पर चुना गया था। उन्होंने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए संविधान सभा में आवाज उठाई, 1950 में वे कांग्रेस की ओर से सांसद मनोनीत हुए थे। बाद में भानुप्रतापपुर के विधायक भी रहे। कैबिनेट मिशन योजना के तहत भारतीय समस्या के निराकरण के लिए चुने गए थे।

संविधान निर्माण में निभाई अहम भूमिका ठा. रामप्रसाद पोटाई के पोते नितिन पोटाई ने भारत से कहा कि ठा. रामप्रसाद पोटाई छत्तीसगढ़ के उन महापुरुषों में से एक है। जिन्होंने भारत के संविधान के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भारतीय संविधान सभा में रियासत की जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। बहुत सारे प्रावधान उस समय लागू हुए। खास तौर से पोटाई जी ने आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया। आज जिस सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय की बात विभिन्न संगठन करते हैं। उसे 70 साल पहले ठा. रामप्रसाद पोटाई ने कहा था। रामप्रसाद पोटाई श्रम कानून के जानकार थे, वो चाहते थे कि यहां के मजदूरों को उनके श्रम का वाजिब मूल्य मिले।

ठा. रामप्रसाद पोटाई संविधान सभा के सदस्य बने थे। तब गांववाले बेहद खुश हुए थे। इस दौर को याद करते हुए गांव के मोहनदास मानिकपुरी ने भारत से कहा कि ठा. रामप्रसाद पोटाई इंग्लैंड से पढ़ कर आए थे। जब विधायक बने तब भी लोगों ने किसी त्योहार की तरह जश्न मनाया था। स्वर्गीय रामप्रसाद पोटाई 1920-1962 ने अपने 42 साल के छोटे से जीवनकाल में आदर्श विद्यार्थी, सामाजिक नेता, सफल वकील, विधायक और संविधान सभा के सदस्य के रूप में कई बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की लेकिन उनकी स्मृति को अमर बनाने और नई पीढ़ी को प्रेरणा देते के लिए सरकार कोई पहल नहीं कर रही है।

कन्हारपुरी गांव के सोमनाथ ध्रुव कहते हैं कि इतने बड़े व्यक्ति का काम आज उनके गांव और आस-पास तक सीमित रह गया। दूसरी जगह उनका इतिहास बताया ही नहीं गया। बस्तर में ही आने वाली पीढ़ी को उनका इतिहास नहीं पता होगा। आदिवासी बाहुल्य बस्तर क्षेत्र से कोई आदिवासी सपूत संविधान सभा का सदस्य रहा हो। तो देश की राजधानी में उनका नाम होना चाहिए। सोमनाथ निराश होकर कहते हैं कि यहां तो छत्तीसगढ़ की राजधानी में ही उनका नाम नहीं है। न ही कोई उनके नाम से कोई सरकारी संस्था है।




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