

भानुप्रतापपुर ब्लॉक के तीसरे चरण में निर्मित नवीन गोठान बैजनपुरी एवं डुमरकोट के महिला स्व-सहायता समूहों का दल एक्सपोजर विजिट पर ग्राम पंचायत भैंसाकान्हर के आश्रित ग्राम नरसिंगपुर के गोठान पहुंचा। कृषि विभाग एवं उद्यान विभाग के अगुवाई में महिला समूहों के दल को राज्य सरकार द्वारा संचालित गोधन न्याय योजना के तहत किए गए कार्यों का भ्रमण कर अवलोकन कराया गया। आत्मनिर्भर हो रहे नरसिंगपुर गोठान की महिला स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष कुंती दर्रो ने भ्रमण में आए महिला समूहों के सदस्यों को बताया कि गोधन न्याय योजना अंतर्गत नरसिंगपुर में सब्जी की खेती, लाख खेती के लिए सेमियालता पौधों का रोपण, नेपियर घास, मुर्गी पालन, मछली पालन के कार्यों को महिला समूह और गोठान समिति के द्वारा की जा रही है। उन्होंने बताया कि गोठान में 20 वर्मी टंकी बनी है, जिसमे से अब तक 232 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट का विक्रय किया जा चुका है। इससे 02 लाख 32 हजार रुपये की आमदनी नरसिंगपुर गौठान समिति एवं स्व-सहायता समूह को हुई है। वर्तमान में 300 बैग वर्मी खाद पैकिंग कर तैयार है। उसमें से 141 बैग वर्मी खाद कृषि विभाग के माध्यम से वन विभाग को बांस रोपणी वृक्षारोपण कार्य हेतु विक्रय की जाएगी।
ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी प्रवीण कवाची ने महिला स्व-सहायात समूहों के सदस्यों को वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने की विधि की जानकारी देते हुए बताया कि वर्मी खाद बनाने के लिए सर्वप्रथम टैंक के फर्श पर बालू, रेत की एक इंच मोटी परत बिछायें, उसके ऊपर 3 से 4 इंच मोटाई में फसल अपशिष्ट, घास, पेड़, पौधों की पत्तियां, वानस्पतिक कचरा की परत बिछायें। उसके बाद गोठान में खरीदे गए 15 से 20 दिन के पुराने गोबर को 18 इंच तक मोटी परत बिछायें, प्रति टांका 15 क्विंटल तक गोबर की आवश्यकता होती है। प्रति टैंक 05 हजार वर्मी केंचुआ या 5 किलोग्राम केंचुआ छोड़ा जाता है। वर्मी केंचुआ को अंधेरा बहुत पसंद है इसलिए वर्मी बेड एवं टैंक को हमेशा टाट, बोरा, सूखी घास-पूस से ढंककर रखें, उचित नमी बनाए रखने समय-समय पर टैंक में पानी का छिड़काव करें। टांके में 30 से 35 प्रतिशत तक नमी बनाए रखना चाहिए। इस विधि से उच्च गुणवक्ता का वर्मी खाद 75 से 80 दिन में बन कर तैयार हो जाती है।

ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी टी.एस.ध्रुव ने महिला स्व-सहायता समूहों को उन्नत तकनीक से सब्जी खेती की जानकारी देते हुए कहा कि सुनियोजित ढंग से जल संरक्षण तकनीक अपना कर कम से कम पानी मे फसल की अधिक पैदावार ली जा सकती है। ड्रिप सिंचाई से 70 प्रतिशत तक जल की बचत की जा सकती है। इससे फसल तेजी के साथ वृद्धि होती है, फसलों की पैदावार बढ़ती है तथा खरपतवार घास नियंत्रण अत्यंत ही सहायक होती है। ऊंचे-नीचे खेतों में भी ड्रिप सिंचाई प्रभावी ढंग से उपयोगी है। फसलों में तरल सूक्ष्म पोषक तत्व को ड्रिप सिंचाई वाले पानी के साथ फसलों में प्रवाहित किया जाता है जिससे फसलों को संतुलित मात्रा में पोषक तत्व मिलती है।

महिला समूहों के दल को भैंसाकान्हार के सब्जी उत्पादक प्रगतिशील किसान के 25 एकड़ फार्म का भी कराया गया भ्रमण उन्नत तकनीक से खेती की बारीकियों को समझने के उद्देश्य से महिला समूहों के दल को भैंसाकान्हार के प्रगतिशील किसान रविशंकर अवस्थी के 25 एकड़ वेजिटेबल्स फार्म का विजिट कराया गयाए जहां फार्म मशीनरी की जानकारी के साथ फार्म में लगे सब्जियों की तुड़ाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग, मार्केटिंग सबंधी जानकारी दी गई। फार्म में करेला 6 एकड़ में, खीरा 3 एकड़, टमाटर 5 एकड़, मिर्च 9 एकड़, 01 एकड़ शेड नेट, 01 एकड़ पैक हाउस, मशरूम उत्पादन हाउस का भ्रमण कराया गया एवं सब्जी फसलों को उन्नत तकनीकी से लगाने की विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी गई। इस अवसर पर सरपंच हिंसाराम भुरकुईया, गोठान समिति के अध्यक्ष बीरेंद्र कुरेटी, मन्नू मरकाम भी उपस्थित थे।