बस्तर मित्र न्यूज।
चिटफंड लुटेरों की जब्त की गई जमीनों को नीलाम कर प्राप्त रकम में से निवेशकों का पैसा (जो डूबा हुआ माना जा रहा था) उसका भुगतान किया जाएगा, ऐसा शासन की ओर से कहा गया था। लोगों ने यह मान लिया था कि चिटफंड वालों की भूमि पर्याप्त है और नीलामी द्वारा इतनी रकम तो अवश्य आ जाएगी जिससे निवेशकों का भुगतान आराम से हो जाएगा लेकिन कांकेर के भूमाफिया तथा अधिकारियों के इरादे कुछ और थे। भू माफियाओं के द्वारा नीलामी के पूर्व शहर के एक होटल में बैठक कर सुनियोजित ढंग से करोड़ों की कीमत की भूमि का लाखों में मूल्य निर्धारण करते हुए लगभग दो दर्जन बोलीदारों का रिंग बनाया गया, उसके बाद यह तय किया गया कि करोड़ों रुपए के मूल्य पर भूमि खरीदने से क्रेता को आय के स्रोत का विवरण देने जैसी अड़चनों का सामना करना पड़ेगा, साथ ही भूमि के रजिस्ट्री शुल्क आदि में अनावश्यक रूप से अधिक राशि खर्च करनी होगी, इसलिए सब ने मिलकर यह योजना बनाई कि नीलामी में भूमि का मूल्य कम से कम रख कर केवल आपसी तालमेल से नीलामी प्रक्रिया की जाएगी तथा उक्त नीलामी में भाग लेने वाले किसी एक व्यक्ति विशेष के पक्ष में भूमि के नीलाम का फैसला होने दिया जाएगा। इस षड़यंत्र के अनुसार अंततः यही हुआ, ऐसा ही किया गया और भू माफिया "अनमोल हर्बल एग्रो केयर फार्मिंग एण्ड डेयरी केयर कम्पनी" के हिस्से वाली करोड़ों की जमीन कुछ लाख में पाकर शासकीय अधिकारियों की मदद से ही शासन को चूना लगाने में शत प्रतिशत सफल हुए। नीलामी में भाग लेने वाले तथा बोलियां नहीं बढ़ाने वाले चालाक लोगों को भी चुप रहने के बदले हिस्सा मिलेगा, इसके लिए 2 लोगों की जवाबदेही तय की गई है, जो अधिकारियों मीडिया आदि सभी को उपकृत कर येन,केन, प्रकरण मामला मैनेज कर लेंगे।
अधिकारियों तथा भूमाफिया के इस बेईमानी भरे षड़यंत्र के कारण सबसे बड़ा नुकसान उन निवेशकों को होगा, जो पहले तो चिटफंड कंपनी वालों द्वारा ठगे गए और अब, जब यह उम्मीद हो गई थी कि चिटफंड वालों की प्रॉपर्टी नीलाम कर कलेक्टर साहब हमें पैसा दिलाएंगे, यह उम्मीद भी चकनाचूर हो रही है क्योंकि भू माफिया और साहब लोगों के गेम के कारण जहां करोड़ों आने थे, वहां कुछ लाख ही जमा हुए हैं । इससे होगा यह कि डूबी हुई रकम का 100 वां भाग ही मिल पाएगा, जो ऊंट के मुंह में जीरा बराबर होगा। यदि ईमानदारी से नीलामी होती और सभी बोलीदार स्वस्थ प्रतियोगिता के अनुसार बोली लगाते तो करोड़ों रुपए सरकार के हाथ में आते, जिसमें से चिटफंड निवेशकों के डूबत खाते की राशियों के भुगतान भी हो जाते और उसके बाद भी सरकार के पास लंबी रकम बच जाती जो जनहित में काम आती। करोड़ों के इस घोटाले के समाचार अब आम हो चुके हैं और आम जनता में प्रशासन के प्रति आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है।
अनेक लोग कह रहे हैं कि कलेक्टर साहब ने अपना वादा नहीं निभाया बल्कि ऐन मौके पर भू माफिया का साथ देने लग गए, एक तरह से वे स्वयं भी अपने "वेस्टेड इन्टरेस्ट " में "चीट" तथा चीटिंग करने लग गये। पत्रकार कमल शुक्ला का भी स्पष्ट आरोप है कि कलेक्टर चंदन कुमार की जानकारी के बिना इतना बड़ा घपला संभव ही नहीं था। उसमें निश्चित रूप से कलेक्टर की क्या भूमिका है, यह तथ्य सामने आ ही जाएगा।