
कांकेर जिले के ग्राम चनार में कवड़े परिवार के द्वारा प्रथम कार्यशाला बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें समाज प्रमुखों के द्वारा बताया गया कि कवड़ो परिवार की संस्कृति व सभ्यता की उत्पति हजारों वर्ष पूर्व से ही प्रकृति आधारित कोया पुनेम अर्थात मानव सत् मार्ग एवं प्रकृति जीवन शैली को अपनाये हुए विद्यमान है। मगर बाहरी आडम्बरिक विचारधारा के प्रभाव में आकर कवड़ो (कुल परिवार) की प्रभावी पीढ़ी आदर्श युक्त परंपराओं को छोड़कर अन्य व्यवस्थाओं को अपना रहे है। इसलिए कावड़े परिवार में गहरा संकट मंडराने लगा है। उनके विकल्प में अपने पेन जागा, पेन कड़ा, पेन मंडाओं पर मौजूद विश्व की वैभवशाली सभ्य संस्कृति (बाना-बानी) व कोया पुनेम आधारित व्यवस्था को कावड़े (कुल परिवार) में पुर्नस्थापित करने व संरक्षण संवर्धन पूर्नजागरण करने हेतु कावड़े के पुरखों की उच्चत्तम आदर्श व्यवस्थाएं टोन्डा-मंण्डा-कुण्डा, गड़, मंडा, जागा एवं कोट नार्र जागा बुम-बुमकाल तथा पेन प्रक्रियाओं के कारण उनके पूर्वज कुण्ड व्यवस्था से कालान्तर में पेन बनकर आने वाली पीढ़ियों के लिए विज्ञान सम्मत पथ दर्शित का काम करते आ रहे है, उन्ही पेन बानाओ की आसीद् से ग्राम चनार में कावड़े युवा-युवतियों (कुल परिवार) का प्रथम कार्यशाला बैठक का आयोजन किया गया। विषय पर गहन चिंतन मनन हेतु कार्यशाला बैठक को सफल बनाने के लिए समाज प्रमुखों का प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष सहयोग व गरिमामयी उपस्थिति प्रार्थनीय रहा।
इस अवसर पर श्यामसिह सेवता, मन्नुराम कावड़े, दीपक सेवता, पुणैश कावडे़, मनोज कावडे, डुकेश्वर कावड़े, खिलेश्वर कावड़े, हर्ष दीप कावड़े, खोमेश कावड़े, विनोद नाग, राजमन नाग, अनिल कावडे़, पिसाहू कावड़े, शिवनाथ कावड़े, अदकराम कावड़े, कु. संध्या कावड़े, कु. भावना कावड़े, कु. अनिता कावड़े, अलताप कावड़े, आकाश कावड़े, मनोहर कावड़े, पीलाराम कावड़े, रजऊ कावड़े एवं अन्य समाज के प्रमुख उपस्थित थे।