बस्तर संभाग

अनुसूचित जनजाति(ST) होने का आधार जाति है, धर्म नहीं . . .

कांकेर/बस्तर मित्र।

भारत देश में लगभग 700 आदिवासी जातियाँ हैं; जितने आदिवासी उतने उनके धर्म और संस्कृति हैं। राजस्थान में भील और मीणा आदिवासी हैं, मीणा लोग हिन्दू धर्म मानते हैं। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, और आंध्रप्रदेश में गौंड आदिवासी हैं वे लोग गोंडी और कोयापुनेम कुछ हिन्दु धर्म मानते हैं। मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर और केरल में आदिवासी लोग ईसाई धर्म मानते हैं। सिक्किम के आदिवासी बौद्ध धर्म मानते हैं। काश्मीर, लेह और लद्दाख के आदिवासी मुस्लिम धर्म मानते हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल और बिहार के उराँव, मुंडा, खड़िया, हो और संथाल आदिवासी लोग मिश्रित हैं वे हिन्दू, ईसाई, सरना, बौद्ध, मुस्लिम और जैन धर्म भी मानते हैं।

इस प्रकार आदिवासियों के धर्मों में विविधता है; और उनके रहन-सहन, संस्कृति, भाषा-बोली, इतिहास व रूपरंग में भी भिन्नताएं है। आदिवासी मूलत: प्रकृति पूजक हैं, उनकी भाषा व परंपराओं में पूर्वजों की छाप दिखाई देती है। यह आदिवासियों को अन्य लोगों से भिन्न एक विशिष्ट पहचान देती है। अन्य जातियों के समानांतर धर्म मानने पर भी इनकी अलग ही विशिष्टता है। जैसे कि भारत देश के ईसाई आदिवासियों की संस्कृति यूरोप के ईसाईयों से कई मायने में भिन्न है। झारखंड के ईसाई आदिवासी नृत्य के साथ माँदर और नगाड़ा बजाते हैं, जबकि यूरोप में गिटार और पियानों बजाने का प्रचलन है। शादी से पूर्व यहाँ लोटापानी से सगाई की जाती है, जबकि यूरोप में कुछ और ही रीति है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सभी आदिवासियों की अपनी भाषा-बोली, रीति-रिवाज, नृत्यगान पूर्वजों से चली आ रही है। आदिवासियों के बीच कोई एक विशेष धर्म व संस्कृति नहीं है। इसलिए कोई यह दावा नहीं कर सकता कि वह जिस रीति-विधि में व्यहार करता है वैसा ही दूसरे लोग भी करे तभी वे लोग आदिवासी कहलायेंगे। अगर कोई ऐसा कहता है तो उससे बड़ा झूठा कोई नहीं हो सकता।

आजकल कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में( डिलिस्टिंग) असूचीकरण की मांग की जा रही है। जशपुर और इसके इर्द-गिर्द डिलिस्टिंग कार्यक्रम, रैली वगैरह किये जा रहे हैं। डिलिस्टिंग के विरोध में भी रैलियाँ व सभाएं हो रही है। डिलिस्टिंग होगा या नहीं होगा यह बहुत दूर की बात है। परंतु आदिवासी विरोधी शक्तियाँ फन फैलाये खड़ी है कि कब आदिवासियों को डस कर नष्ट कर दे। डिलिस्टिंग के समर्थन और विरोध दोनों ही प्रकार के कार्यक्रमों से आदिवासियों को नुकसान और आदिवासी विरोधियों व इसकी राजनीतिक रोटी सेकने वालों को फायदा पहुंचने वाला है। डिलिस्टिंग के बहाने अपने खोए हुए जनाधार को मजबूत करने आदिवासियों को बाँटकर ध्रुवीकरण का प्रयास किया जा रहा है। इससे आदिवासी एकता और उनकी कमर टूट जायेगी, हमारे सँवैधानिक अधिकार पर भी बट्टा लग सकता है।

असूचीकरण(डिलिस्टिंग )कोई एक धर्म के लोगों का नहीं होता है, क्योंकि संविधान सभी आदिवासियों को बराबर हक देता है। डिलिस्टिंग होगी तो धर्मांतरित सभी हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और उन आदिवासियों की भी होगी जिन्होंने अपनी बोली भाषा और संस्कृति छोड़ दिया है या बदल दिया है। डिलिस्टिंग होने से पूरे देश में आदिवासियों की जनसंख्या आधी से भी कम हो जायेगी। जनसंख्या के अनुपात में हमारे अधिकार भी कम हो जाएंगे। नौकरी में आरक्षण, राजनीतिक सीटों में आरक्षण, अनुसूचित क्षेत्र, 5वी व 6वीं अनुसूची के प्रावधान सब घट कर आधी से भी कम हो जाएगी।




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Mannu Ram Kawde

पत्रकारिता के लिए समर्पित . .



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