छत्तीसगढ़

मुंबई के संजय गांधी राष्ट्रीय पार्क बोरावली में रह रहे आदिवासियों से मिले अजजा सदस्य. . .

कांकेर

राज्य अजजा आयोग के सदस्य नितिन पोटाई अपनी दो दिवसीय मुंबई प्रवास के दौरान संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान बोरावली में रह रहे वारली जनजाति के सदस्यों से मिले तथा उनके सामाजिक, सांस्कृतिक शैक्षणिक एवं आर्थिक परिस्थितियों से भी अवगत हुए। उनके साथ आदिवासी विकास विभाग महाराष्ट्र राज्य के परियोजना अधिकारी सुप्रिया चौहान और अन्य अधिकारीगण साथ में थे।

इस दौरान अजजा आयोग सदस्य नितिन पोटाई वारली जनजाति के घरों को देखा तथा वहां निवास कर रहे व्यक्तियों से बातचीत कर उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास किया बातचीत के दौरान वारली जनजाति के सबसे बुजुर्ग महिला मंगली बरफ ने बताया कि वे पिछले कई वर्षों से यहां निवास कर रहे हैं। इस जनजाति के लोग पालघर एवं थाना जिला में भी निवास करते हैं। बुजुर्ग महिला ने यह भी बताया कि वह और उनका परिवार यहां तब से निवास कर रही है, जब यहां राष्ट्रीय उद्यान भी नहीं बना था। यहां लगभग 350 आदिवासी परिवार के लोग निवास कर रहे हैं। ऐसे ही 10 और भी बस्ती इस नेशनल पार्क क्षेत्र में है। 2011 की जनगणना के अनुसार मुंबई शहर के आसपास 1.12 प्रतिशत आदिवासी निवास कर रहे हैं।

इस दौरान आयोग सदस्य नितिन पोटाई ने वारली जनजाति के युवा लोक चित्रकार दिनेश बरफ से मिले जिन्होंने वारली जनजाति की लोक चित्रकारी को विश्व पटल पर पहुंचाया है। दिनेश बरफ ने बातचीत के दौरान बताया कि वे बचपन से चित्रकारी का काम कर रहे हैं। उनके लोक चित्रकारी में आदिवासी देवी-देवता, फूल-पत्ती, जंगली जानवर आदि के दृश्य परिलक्षित होते हैं। उनके द्वारा कपड़े के ड्राइंग शीट में आटे के माध्यम से चित्र बनाया जाता है जो न केवल भारत में वरन विदेशों में भी लोकप्रिय है। उसने कहा कि उनके पूर्वज ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन मां पिताजी पढ़े लिखे हैं। पहले उनके पूर्वजों को पढ़ने नहीं दिया गया लेकिन अब उनके समाज के लोग शिक्षित हो रहे हैं। वह स्वयं भी स्नातक की उपाधि प्राप्त किए हैं। इस दौरान लोक चित्रकार दिनेश बरफ ने अपनी कलाकृति भी अजजा आयोग सदस्य नितिन पोटाई को भेंट की।

देश की सभी आदिवासियों की स्थिति एक जैसी है

अपने प्रवास के बाद अजजा आयोग सदस्य नितिन पोटाई ने कहा कि देश की सभी आदिवासियों की स्थिति एक जैसी है। चाहे वे दक्षिण भारत के हो, चाहे वे उत्तर भारत के हो या फिर पूर्व अथवा पश्चिम भारत के। वे सभी आर्थिक शैक्षणिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़े हुए हैं और वे जल जंगल और जमीन के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। कहीं उन्हें पुनर्वास एवं व्यवस्थापन के लिए लड़ना पड़ रहा है तो कहीं आर्थिक परेशानियों के लिए लड़ना पड़ रहा है। वे यदि समृद्ध हैं तो सांस्कृतिक रूप से जो उनके धरोहर के रूप में विद्यमान हैं। उनके दो राज्यों के भ्रमण से आदिवासियों के जीवन शैली को नजदीक से देखने का अवसर मिला।




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Kiran Komra

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