
राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व सदस्य और कांग्रेस नेता नितिन पोटाई ने केन्द्र सरकार द्वारा लाये जा रहे अधिवक्ता संषोधन अधिनियम 2025 को देश के अधिवक्ताओं के हित में नहीं बताते हुए इसका पूर जोर विरोध किया है और इसे वापस लेने की मांग की है। श्री पोटाई ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा अधिवक्ता अधिनियम 1961 में संशोधन कर नया कानून लाने की तैयारी की जा रही है जिसे अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 कहा गया है उक्त बिल पास होकर कानून में तब्दील हो जायेगा तो यह अधिवक्ताओं के हितों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करेगा। प्रस्तावित अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 अधिवक्ताओं के एकता और अखण्डता को खण्डित करने वाला है।यह कानून अधिवक्तओं के संवैधानिक अधिकार अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करता है।
श्री पोटाई ने कहा कि देशभर के अधिवक्तागण पिछले कई वर्षों से एक मजबूत अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम की माँग कर रहे थे। लगातार बढ़ते हमले, पुलिसिया दमन, प्रशासनिक ज्यादतियाँ, और वकीलों पर झूठे मुकदमों की बाढ़ ने इस माँग को और ज़रूरी बना दिया था। अतः अधिवक्ता संगठनों ने अनगिनत प्रदर्शन किए, हड़तालें कीं और सरकार से सुरक्षा सुनिश्चित करने की माँग की। पर जब सरकार ने विधेयक लाया, तो यह अधिवक्ताओं के हित में ही नहीं हैं। इस विधेयक में कई ऐसे प्रावधान जोड़े गए हैं, जो अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए पर्याप्त हैं जैसे सरकार के खिलाफ पैरवी करना ’विशेष निगरानी’ के दायरे में आएगा यदि कोई अधिवक्ता सरकार, सरकारी एजेंसी या किसी प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ बार.बार मुकदमे दायर करता है, तो उसकी गतिविधियों की ’विशेष जाँच’ होगी। मानवाधिकार मामलों, जनहित याचिकाओं, या पत्रकारों.कार्यकर्ताओं के लिए केस लड़ने वाले वकीलों को सरकार की एजेंसियों के निशाने पर लिया जाएगा। पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई मुश्किल होगी यदि किसी अधिवक्ता पर पुलिस द्वारा हमला किया जाता है, तो पहले अधिवक्ता को साबित करना होगा कि हमला ’पूर्व नियोजित’ था । अन्यथा पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। इस कानून से किसी भी वकील संगठन द्वारा सरकार के खिलाफ हड़ताल या प्रदर्शन करने को ’न्यायिक व्यवस्था को बाधित करने वाला कार्य’ माना जाएगा और इसमें भाग लेने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। वहीं बार काउंसिल ऑफ इंडिया (ठब्प्) के नियमों को सरकार अपनी मर्जी से संशोधित कर सकेगी और किसी भी अधिवक्ता का लाइसेंस रद्द करने का अधिकार रखेगी। सरकार अपने विरोधी वकीलों को सीधे पेशे से निकाल सकेगी।
श्री पोटाई ने कहा कि सरकार का कहना है कि यह विधेयक वकीलों की जिम्मेदारियों को परिभाषित करने और न्यायिक प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करने के लिए लाया गया है, पर असलियत यह है कि यह अधिनियम अधिवक्ताओं को सरकार के खिलाफ पैरवी करने से रोकने की साजिश है। सरकार पहले ही पत्रकारों और एक्टिविस्टों को चुप करा चुकी है, अब बारी वकीलों की है पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने पत्रकारों की स्वतंत्रता पर हमला किया, प्रेस पर पाबंदियाँ लगाईं, असहमति जताने वाले बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला। अब सरकार की निगाह अधिवक्ताओं पर है, अगर यह विधेयक कानून बनता हैए तो यह लोकतंत्र और न्यायिक स्वतंत्रता की हत्या करने वाला सिद्ध होगा।
श्री पोटाई ने अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 पर सवालिया निशान उठाते हुए कहा कि जब सरकार के खिलाफ वकील मुकदमा नहीं लड़ सकेंगे, तो जनता की आवाज कौन बनेगा ? जब बार काउंसिल को सरकार नियंत्रित करेगी, तो वकीलों की स्वतंत्रता कैसे बचेगी ? जब सरकार के खिलाफ दलील रखना अपराध बन जाएगा, तो फिर लोकतंत्र की क्या बची रह जाएगी ? अतः सरकार अधिवक्ता संशोधन अधिनियम 2025 को तत्काल वापस ले।