
धरती पर आने के बाद, मानव विकास एक लंबी और जटिल प्रक्रिया रही है, जिसमें अफ्रीका में प्रारंभिक मानव प्रजातियों का विकास और धीरे-धीरे दुनिया भर में फैलना शामिल है, साथ ही औजारों का निर्माण, भाषा का विकास और सामाजिक संगठन का विकास हुआ
प्रारंभिक मानव:- अफ्रीका में, लगभग 6 से 2 मिलियन वर्ष पहले, मानव विकास का पहला चरण शुरू हुआ, जहाँ प्रारंभिक मानव प्रजातियों के जीवाश्म पाए गए हैं, होमो इरेक्टस: - लगभग 1.8 मिलियन वर्ष पहले, होमो इरेक्टस नामक एक नई प्रजाति उभरी, जिसने पहले से अधिक जटिल औजार बनाए और आग का इस्तेमाल करना सीखा, निएंडरथल और होमो सेपियंस: - होमो इरेक्टस के बाद, विकास दो शाखाओं में विभाजित हो गया - निएंडरथल और होमो सेपियंस. निएंडरथल यूरोप और एशिया में रहते थे, जबकि होमो सेपियंस अफ्रीका में विकसित हुए, कृषि क्रांति: - लगभग 10,000 ईसा पूर्व, मनुष्यों ने पौधों और जानवरों को पालतू बनाना शुरू किया, जिससे कृषि का विकास हुआ और वे एक जगह पर बसने लगे, सभ्यता का विकास: - कृषि क्रांति के बाद, शहरों और सभ्यताओं का विकास हुआ, जो आज की दुनिया का आधार बने, मानव विकास के महत्वपूर्ण कारक: पर्यावरण:- जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों ने मानव विकास को प्रभावित किया, जैसे कि भोजन और आवास की उपलब्धता, सामाजिक संगठन: - मानव सामाजिक रूप से विकसित हुए, और उन्होंने भाषा, कला और संस्कृति का विकास किया, प्रौद्योगिकी: - मानव ने औजार और उपकरणों का विकास किया, जिससे उन्हें अपने पर्यावरण को नियंत्रित करने और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिली, मस्तिष्क का विकास: - मानव मस्तिष्क का आकार और जटिलता समय के साथ बढ़ी, जिससे उन्हें अधिक जटिल सोच और समस्या समाधान करने की क्षमता मिली.
चार्ल्स डार्विन की "ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़" नामक पुस्तक से पूर्व साधारण धारणा यह थी कि सभी जीवधारियों को किसी दैवी शक्ति (ईश्वर) ने उत्पन्न किया है तथा उनकी संख्या, रूप और आकृति सदा से ही निश्चित रही है। परंतु उक्त पुस्तक के प्रकाशन (सन् 1859) के पश्चात् विकासवाद ने इस धारणा का स्थान ग्रहण कर लिया और फिर अन्य जंतुओं की भाँति मनुष्य के लिये भी यह प्रश्न साधारणतया पूछा जाने लगा कि उसका विकास कब और किस जंतु अथवा जंतुसमूह से हुआ। इस प्रश्न का उत्तर भी डार्विन ने अपनी दूसरी पुस्तक "डिसेंट ऑव मैन" (सन् 1871) द्वारा देने की चेष्टा करते हुए बताया कि केवल वानर (विशेषकर मानवाकार) ही मनुष्य के पूर्वजों के समीप आ सकते हैं। दुर्भाग्यवश धार्मिक प्रवृत्तियोंवाले लोगों ने डार्विन के उक्त कथन का त्रुटिपुर्ण अर्थ (कि वानर स्वयं ही मानव का पूर्वज है) लगाकर, न केवल उसका विरोध किया वरन् जनसाधारण में बंदरों को ही मनुष्य का पूर्वज होने की धारणा को प्रचलित कर दिया, जो आज भी अपना स्थान बनाए हुए है। यद्यपि डार्विन मनुष्य विकास के प्रश्न का समाधान न कर सके, तथापि इन्होंने दो गूढ़ तथ्यों की ओर प्राणिविज्ञानियों का ध्यान आकर्षित किया .
पृथ्वी के 4.6 अरब साल इतिहास को भू-वैज्ञानिक कई खंडों में बांट कर देखते हैं।[3] इन्हें कल्प (इयॉन), संवत (एरा), अवधि (पीरियड) और युग (ईपॉक) कहते हैं। इनमें सबसे छोटी इकाई है ईपॉक। मौजूदा ईपॉक का नाम होलोसीन ईपॉक है, जो 11700 साल पहले शुरू हुआ था।[4] इस होलोसीन ईपॉक को तीन अलग-अलग कालों में बांटा गया है- अपर, मिडल और लोअर। इनमें तीसरे यानी लोअर काल को मेघालयन नाम दिया गया है।[5] मानवाकार सभी जीवाश्म भूगर्भ के विभिन्न स्तरों से प्राप्त हुई हैं। अतएव मानव विकास काल का निर्धारण इन स्तरों (शैल समूहों) के अध्ययन के बिना नहीं हो सकता। ये स्तर पानी के बहाव द्वारा मिट्टी और बालू से एकत्रित होने और दीर्घ काल बीतने पर शिलाभूत होने से बने हैं। इन स्तरों में जो भी जीव फँस गए, वो भी शिलाभूत हो गए। ऐसे शिलाभूत अवशेषों को जीवाश्म कहते हैं। जीवाश्मों की आयु स्वयं उन स्तरों की, जिनमें वे पाए जाते हैं, आयु के बराबर होती है। स्तरों की आयु को भूविज्ञानियों ने मालूम कर एक मापसूचक सारणी तैयार की है, जिसके अनुसार शैलसमूहों को 5 बड़े खंडों अथवा महाकल्पों में विभाजित किया गया : हेडियन (Hadean) आद्य (Archaean) पुराजीवी (Palaeozoic) मध्यजीवी (Mesozoic) नूतनजीवी (Cenozoic) महायुग। इन महाकल्पों को कल्पों में विभाजित किया गया है तथा प्रत्येक कल्प एक कालविशेष में पाए जानेवाले स्तरों की आयु के बराबर होता है। इस प्रकार आद्य महाकल्प एक "कैंब्रियन पूर्व" (Pre-cambrian), पुराजीवी महाकल्प छह 'कैंब्रियन' (Cambrian), ऑर्डोविशन, (Ordovician), सिल्यूरियन (Silurian), डिवोनी (Devonian), कार्बोनी (Carbniferous) और परमियन (Permian), मध्यजीवी महाकल्प तीन ट्राइऐसिक (Triassic), जूरैसिक (Jurassic) और क्रिटैशस (Cretaceous) और नूतनजीव महाकल्प पाँच आदिनूतन (Eocene), अल्प नूतन (Oligocene), मध्यनूतन (Miocene), अतिनूतन (Pliocene) और अत्यंत नूतन (pleistocene) कल्पों में विभाजित हैं।