
छत्तीसगढ़ का महापर्व छेरछेरा भानुप्रतापपुर अंचल में बेहद हर्षोल्लास से मनाया गया। हालांकि इस महापर्व की खुशियों में कोरोना प्रोटोकाल का ग्रहण जरूर लगा फिर भी तमाम पाबंदियों के बावजूद यह महापर्व बेहद उत्साह पूर्वक मनाया गया। जैसा कि हर वर्ष होता है युवक युवतियां व छोटे बच्चो में इस पर्व के प्रति उत्साह देखते ही बन रहा था।
पौष माह में पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व मूलतः किसानों के खरीफ फसल का कार्य पूर्णतः संपादित होने की खुशी में मनाया जाता है। खेतों से कटकर फसल जब खलिहानों में लाई जाती है, और उसके बाद खलिहानों में मिंजाइ के उपरांत अनाज को घरों के कोठियों में संग्रहित कर लिया जाता है, तब कृषि कार्य पूर्ण माना जाता है, और इसी की खुशी में यह पर्व मनाया जाता है।
इस पर्व को अन्नादान का पर्व भी माना जाता है। इस पर्व में युवक युवतियां व बच्चे घर-घर जाकर नृत्य व गीत के माध्यम से अधिकार पूर्वक अन्ना की मांग करते हैं। कृषि कार्य पूर्ण करने के पश्चात घर मे अन्ना के संकलन के खुशी में कृषक भी युवक युवतियों व बच्चो को उनका सामूहिक हिस्सा खुशी खुशी प्रदान करते है।
सोमवार को इस पर्व पर स्थानीय छोटे छोटे बच्चो के अलावा नगर के आस पास व दूरस्थ अंचलों से युवक युवतियों के कई दल नगर में छेरछेरा नृत्य करते हुए नजर आए। हालांकि अब समय के साथ नृत्य की शैली में काफी परिवर्तन आ गया है। पहले लड़के बड़े-बड़े डंडे लेकर छेरछेरा नृत्य करते थे तथा छेरिक छेरा, छेर बड़कनीन छेर छेरा के हुंकार के साथ मांग करते थे। वहीं युवतियां सौम्य सुवा नृत्य कर अनाज की मांग करती थीं । परंतु अब इसकी जगह आधुनिक वाद्य यंत्रों ने ले ली है जिसे बजाकर व नृत्य कर अन्ना का संकलन करते है। घर घर अनाज का संकलन कर यह दल सामूहिक पिकनिक आनंद लेते हैं।