
राष्ट्रपति भवन में इस बार पद्म पुरस्कारों से देश के नागरिकों को सम्मानित करने का समारोह अपने साथ बड़े बदलाव लेकर आया है। पूरे देश ने महसूस किया कि जमीनी स्तर पर समाज को बेहतर बनाने के लिए मौलिक कार्य करने वाली साधारण नागरिकों के असाधारण योगदान पर विशेष ध्यान दिया गया है। वर्ष 2020 और 2021 के लिए पुरस्कार प्राप्तकर्ता को राष्ट्रपति ने सम्मानित किया पुरस्कृत शख्सियतों में से यहां कुछ नाम जिनके नाम और काम से भी हमें रूबरू होना चाहिए।
नंगे पैर खड़ी कर्नाटक की 72 वर्षाीय आदिवासी महिला तुलसी गौड़ा की यह तस्वीर 1000 शब्दों के आगे भारी है। इन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वह कभी स्कूल नहीं गई लेकिन पौधा जड़ी-बूटियों के ज्ञान के चलते उन्हें इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट कहा जाता है। 12 साल की उम्र से अब तक 30000 से भी ज्यादा पौधे रोप चुकी हैं। उन्होंने फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में अस्थाई तौर पर सेवाएं विधि और आज भी अपने ज्ञान को नई पीढ़ी के साथ बांट रही है पर्यावरण के संरक्षण में उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मंगलोर के 68 वर्षीय फल विक्रेता हरेकाला हजब्बा को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में जो योगदान दिया है। उसे जानकर आप दंग रह जाएंगे संतरे बेचकर रोजाना 150 रु. कमाने वाले हरेकाला हजब्बा ने एक प्राइमरी स्कूल खड़ा करवा दिया। राष्ट्रपति से पुरस्कार लेने के लिए वे सादी सफेद शर्ट और धोती पहनकर पहुंचे तो हर कोई उनकी सादगी का कायल हो गया हरेकाला के गांव न्यूपडपू में कई साल तक कोई स्कूल नहीं था गांव का कोई बच्चा शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहा था। ऐसे में हरेकाला हजब्बा ने साल 2000 में अपनी जिंदगी भर की कमाई लगाकर 1 एकड़ जमीन पर बच्चों के लिए कि स्कूल बनाया उन्होंने कहा था कि मैं कभी स्कूल नहीं गया इसलिए चाहता था गांव के बच्चों की जिंदगी मेरे जैसे ना बीते आज इस स्कूल में कक्षा दसवीं तक 175 बच्चे पढ़ते हैं।
बीज माता/ सीड मदर के नाम से जानी जाने वाली राहीबाई सोमा पोपेरे को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया है। वह महाराष्ट्र के अहमदनगर की महादेव कोली आदिवासी जनजाति की किसान हैं। उन्होंने अपने परिवार से खेती की परंपरिक विधियां सीखी और जंगल के संसाधनों का ज्ञान एकत्र किया दो दशक पहले उन्होंने देसी बीज तैयार करना और उन्हें दूसरों को बांटना शुरू किया। उन्होंने एक ब्लैकबेरी नर्सरी तैयार की जहां सेल्फ हेल्प ग्रुप के सदस्यों को इसके पौधे तोहफे में दिए इसके बाद उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूम-घूमकर देशी बीजों का संरक्षण करने का अभियान शुरू किया यहीं से उन्हें बीच माता का नाम मिला उनके पास एक बीच बैंक है जिसमें करीब 200 प्रकार के देसी बीज है।